छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाईपाटनसेलूद

हीरेंद्र की मुस्कान के पीछे है आंगनबाड़ी दीदी की मेहनत,कुपोषण से संघर्ष और जीवन की ओर वापसी: हिरेंद्र की प्रेरक यात्रा

दुर्ग, 02 मई 2025/ दुर्ग जिले के जामगांव एम परियोजना के आंगनबाड़ी केंद्र अचानकपुर-2 में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बूंदा साहू की सतर्कता और समर्पण ने एक मासूम बच्चे को नया जीवन दिया। यह कहानी है हिरेंद्र यादव की, जो आज स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी रहा है।

10 जुलाई 2021 को हिरेंद्र का जन्म उतई स्वास्थ्य केंद्र में हुआ था। जन्म के समय वह पूरी तरह स्वस्थ था, उसका वजन 3 किलो और लंबाई 46.01 सेमी थी। छह माह बाद आंगनबाड़ी केंद्र में उसका अन्नप्राशन कराया गया और मां को ऊपरी आहार की जानकारी दी गई। लेकिन जल्द ही परिवारिक परिस्थितियों के कारण हिरेंद्र की स्थिति बिगड़ने लगी। मां काम पर जाने लगी और बच्चा दादी के पास रहने लगा। ऊपरी आहार की अनदेखी और पोषण की कमी ने धीरे-धीरे उसके शरीर को कमजोर कर दिया।
एक दिन जब हिरेंद्र की मां उसका वजन कराने आंगनबाड़ी केंद्र आई, तो कार्यकर्ता दीदी ने देखा कि बच्चा न तो बैठ पा रहा है, न पलट पा रहा है और न ही किसी प्रतिक्रिया दे रहा है। उसके शरीर में सूजन थी और हाथ-पांव पर काले निशान उभर आए थे। स्थिति गंभीर थी। कार्यकर्ता दीदी ने तुरंत हरकत में आते हुए उसे पाटन के एनआरसी ले जाया, जहाँ डॉक्टरों ने उसे दुर्ग के पुनर्वास केंद्र भेजने की सलाह दी। पहले तो परिवार तैयार नहीं हुआ, लेकिन कार्यकर्ता दीदी के बार-बार समझाने पर 6 दिन बाद वह तैयार हुए।
दुर्ग पुनर्वास केंद्र में पता चला कि हिरेंद्र को एडिमा है और उसका हीमोग्लोबिन मात्र 4 ग्राम है। वहां उसे दो यूनिट खून चढ़ाया गया। 15 दिन के इलाज के बाद जब वह घर लौटा, तो उसने बैठना और घुटनों के बल चलना शुरू कर दिया। डेढ़ वर्ष में वह चलने लगा, लेकिन बोल नहीं पा रहा था। कार्यकर्ता दीदी ने एक बार फिर पहल की और दो बार उसे पुनर्वास केंद्र लेकर गई, जहां थेरेपी के बाद वह “मां-पापा“ बोलने लगा।
हिरेंद्र की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। एक दिन वह गरम माड़ में गिर गया और उसका बायां हाथ बुरी तरह जल गया। कार्यकर्ता दीदी उसे तुरंत पाटन स्वास्थ्य केंद्र लेकर गईं और तीन महीने के इलाज के बाद वह ठीक हो गया। आज हिरेंद्र 3 वर्ष 9 माह का हो चुका है। वह खुद चलकर आंगनबाड़ी आता है, खाना खाता है, बोलता है और खेलता है। उसकी मां, पिता और पूरा परिवार अब खुश हैं। हिरेंद्र की जिंदगी में यह उजाला संभव हो पाया है एक सजग, समर्पित और संवेदनशील आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की बदौलत, जिसने न सिर्फ समय रहते उसकी जान बचाई बल्कि उसे एक बेहतर भविष्य भी दिया।

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!